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है जरूरी लेकिन पैदल गश्त से दूरी…
ऐसी है पुलिस हमारी
भाटापारा :-भरोसा कायम रखना आम जन का। बेहद मुश्किल है यह काम। अब तक इसमें सफल नहीं हो पाए हैं शहर के रखवाले याने पुलिस। संवाद से जैसी दूरी बना ली गई है उससे जाहिर होता है कि रुचि नहीं है पुलिस की। यही वजह है कि अवैधानिक गतिविधियां दिन-ब-दिन बढ़ रहीं हैं।
पेट्रोलिंग वाहन ही नहीं, पैदल गश्त भी जरूरी मानी जा रही है लेकिन इसे गैरजरूरी मान लिया गया है। गश्त पर निकल तो रहे हैं लेकिन अवैध गतिविधियों पर प्रभावी रोक क्यों नहीं लग पा रही है ? यक्ष प्रश्न है। आम जन तो पहले से ही दूर है यह सवाल उठाने से लेकिन खास याने जनता के नुमाइंदों का मौन कई सवाल उठा रहा है।
है जरूरी, लेकिन गैर जरूरी
पेट्रोलिंग वाहन के साथ पैदल गश्त का किया जाना जरूरी है। नागरिकों से निरंतर संवाद भी बनाए रखने का नियम है लेकिन यह दोनों हमारी पुलिस के लिए गैर जरूरी काम है। परिणाम संवादहीनता के रूप में देखा जा रहा है। घातक है यह स्थिति क्योंकि दोनों के बीच दूरी बढ़ती नजर आती है।
परिणाम इस रूप में
संवादहीनता की यही स्थिति भरोसा तोड़ रही है। प्रभाव उस निगरानी और सूचना तंत्र पर पड़ रहा है, जो आज पूरी तरह ढह चुका है। यही वजह है कि छोटी-छोटी घटनाओं की जड़ तक पहुंचने में अच्छा-खासा समय जाया होता है। यह कीमती समय अपराधी को निकल भागने का पूरा अवसर देता है।
अहम जरूरत इसकी
निरंतर पैदल गश्त और मेल मिलाप नागरिकों से। यह बेहद जरूरी है ताकि सूचना तंत्र मजबूत हो सके और टूट चुका भरोसा वापस बहाल किया जा सके। उम्मीद जरा कम ही है क्योंकि ‘हम श्रेष्ठ हैं’ जैसा भाव मजबूती से कायम है हमारी पुलिस के मन में।