भाटापारा

भाटापारा को जिला बनाने का दोनों प्रमुख दलों का वायदा ; वायदा, वायदा रहेगा या सिर्फ जुमला…..

भाटापारा से मो शमीम खान


भाटापारा:-भाटापारावासी विगत कई वर्षों से नगर को जिले का दर्जा प्राप्त करवाने लगातार हर संभव प्रयासरत रहे है । परन्तु भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं व जन-प्रतिनिधियों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी।

यह भाटापारावासियों का दुर्भाग्य ही कहा जाये कि अधिकतर जब-जब चाहे यह अविभाजीत मध्य-प्रदेश हो या छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद भी इस राज्य में जो भी शासन, भाजपा का या कांग्रेस का रहा, तब-तब एका-ध अपवाद को छोड़कर यहां का जनप्रतिनिधि (विधायक) विपक्ष का ही रहा। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र की लगातार उपेक्षा ही होती रही। जो आज तक जारी है।

जिसका परिणाम, भाटापारा शहर से हर दृष्टि में अपेक्षाकृत छोटे से शहर बलौदा बाजार को कुछ समय पूर्व(भाजपा शासन काल में ) छत्तीसगढ़ शासन ने जिला बना दिया। पर ऐन इसकी घोषणा के अवसर पर इस जिले के साथ पुछल्ले के रूप में भाटापारा का नाम जोड़कर इसे संयुक्त जिला घोषित कर भाटापारा वासियों को खुश करने का भागीरथ प्रयास किया गया। परन्तु इस घोषणा से भाटापारा वासी और आक्रोशित हो गये। गौरतलब है कि संयुक्त जिला बनने के बाद भी इस शहर में आज तक जिला स्तर के किसी भी विभाग के कोई भी कार्यालय नहीं खुले। जिससे यहां के लोगों का आक्रोश और भी बढ़ता चला गया। अभी सम्पन्न हुये विधानसभा चुनाव के पूर्व किसीने शिगुफा चला दिया कि भाटापारा नगर पालिका को शीघ्र ही नगर निगम का दर्जा दे दिया जायेगा| परन्तु यह भी भाजपा की तरह ही “जुमला” मात्र बन कर रह गया। बहरहाल, यहां के निवासी आरंभ से ही भाटापारा को अकेले जिले के रूप में देखना व पहचानना चाहते है। जिसके अनेको कारण भी यहां मौजूद है।
पहला, सबसे बड़ा अहम कारण हावड़ा – मुम्बई मुख्य रेल मार्ग में यह शहर स्थापित है। यहां से देश के हर कोने में आने व जाने के लिये पर्याप्त मात्रा में रेल सुविधायें उपलब्ध है।
दूसरा, यहां की कृषि उपज मण्डी को छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी मण्डी का दर्जा प्राप्त है। जहां राज्य के कोने-कोने से किसान अपनी उपज सुविधाजनक रूप से बेचने आते है।

इसके अलावे भाटापारा क्षेत्र मे शैक्षणिक संस्थाओं का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है । रोजगार के मामले में भी यहां पर कई संसाधन उपलब्ध है। जैसे यहां आस-पास कई छोटी-बड़ी सीमेंट फैक्ट्रियां स्थापित है। यहीं नहीं, भाटापारा शहर व इसके आस-पास लगभग 300 से भी अधिक पोहा, राईस व दाल मिल आदि भी स्थापित है। जिससे यहां व्यापारिक तथा औद्योगिक दृष्टि से नगर के विकास ने पहले से अधिक गति पकड़ी हुई है। जनसंख्या के हिसाब से भी शहर का बहुत विस्तार हो चुका है। इसे दृष्टिगत रखते हुये व यातायात के बढ़ते दबाव के मद्देनजर शहर के चारो ओर “बायपास” मार्ग का निर्माण कर इसे आमजन के लिये खोल भी दिया गया है। जिससे यहां का यातायात सुचारू रूप से संचालित किया जा रहा है। आम लोगों की परेशानियां इससे कम हुई है।

किसानों की सुविधा के लिये सन् 1977 में अविभाजित मध्य प्रदेश के कांग्रेस शासन ने भाटापारा शाखा नहर की नींव रखी थी। जो अब लगभग पूर्ण हो चुकी है। आज इसके माध्यम से लगभग एक हजार हेक्टेयर में किसान अपनी खेतो को सिंचकर खुशहाल जीवन जी रहे हैं। इससे कृषि उत्पादन मैं वृद्धि दर्ज की गयी है।

छत्तीसगढ़ में अभी-अभी विधानसभा चुनाव हुये है। जिसका परिणाम आना अभी बाकी है। चुनाव के समय दोनो प्रमुख दल के नेताओं ने भाटापारा को अलग जिला बनाने की यहां के निवासियों की मांग का समर्थन भी किया है। जिससे यहां के लोगों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में सरकार चाहे किसी भी दल की बनें, भाटापारा को जिला बनना लगभग तय है। यह बात मतगणना के बाद ही पता चलेगी कि भविष्य में बनने वाली सरकार अपने किए वायदों पर कितना खरा उतरती है ?
यहां यह भी बताना लाजमी होगा कि एक बार सार्वजनिक मंच से यहां के भाजपा विधायक ने भाटापारा को जिला बनाने के नाम पर “औचित्यहीन” बताया था।

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