बिलासपुर

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अवमानना के दोषियों पर कड़ा रूख, सजा के साथ जुर्माना सजाएं साथ-साथ चलेंगी या दोनों में से कोई एक सजा देनी है। यह निर्णय हाईकोर्ट का बेंच अपने विवेकानुसार ले सकता है।

अकलतरा से राकेश कुमार साहु

बिलासपुर–.छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान कड़ा रूख किया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए न्यायालयीन अवमानना के दोषी पाए जाने पर छह महीने की सजा और दो हजार रूपये जुर्माने का प्रविधान है। दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी या दोनों में से कोई एक सजा देनी है। यह निर्णय हाईकोर्ट का बेंच अपने विवेकानुसार ले सकता है। वर्तमान में हाईकोर्ट में दो हजार से अधिक अवमानन के मामले लंबित है। न्यायालयीन अवमानना के आरोम में मुख्य सचिव, डीजीपी से लेकर विभिन्न विभागों के सचिव व अधिकारी फंसे हुए है।
बता दें, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में मां भगवती महिला स्व-सहायता समूह, चितौद अध्यक्ष तारा सिन्हा ने सरपंच ग्राम पंचायत चितौद जिला बालोद कुमारी बाई साहू के खिलाफ न्यायलयीन आदेश की अवहेलना का आरोप लगाते हुए अपने अधिवक्ता के माध्यम से अवमानना याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि नौ जनवरी 2024 को हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई के बाद आदेश जारी किया था।
इसका अनुपालन संबंधितों ने नहीं किया है। आदेश का पालन न कर न्यायालयीन आदेश की अवहेलना की है। मामले की सुनवाई सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने अवमानना से घिरे पक्षकारों को न्यायालयीन आदेश का परिपालन के संबंध में एक अवसर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 15 दिनों के भीतर प्रतिवादियों के समक्ष अभ्यावेदन पेश करने और इस पर विधि पूर्वक परिपालन के निर्देश दिए है।
महत्वपूर्ण प्रविधान
-न्यायालयीन अवमानना के आरोपित अधिकारी को छह महीने की सजा या दो हजार रूपये जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकेगा।
-न्यायालय के समक्ष समुचित कारणों के साथ माफी मांगने पर आरोपित को दिए गए दंड की परिधि से बाहर भी किया जा सकेगा।
-स्पष्टीकरण के साथ आरोपित द्वारा सद्भावनापूर्वक मांगी गई माफी केवल इस आधार पर नामंजूर नहीं की जाएगी कि वह सापेक्ष अथवा सशर्त है।
-इस धारा में किसी बात के होते हुए भी जब कोई व्यक्ति सिविल अवमान का दोषी पाया जाता है तब यदि न्यायालय यह समझता है कि जुर्माने से न्याय का उद्देश्य पूरा नहीं होगा और कारावास का दंड आवश्यक है तो वह उसे सादे कारावास से दंडादिष्ट करने के बजाए यह निर्देश देगा कि वह छह मास से अनधिक की इतनी अवधि के लिए जितनी न्यायालय ठीक समझे, सिविल कारागार में निरूद्ध रखा जाए।
-यह भी प्रविधान किया गया है कि कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह साबित कर देता है कि अवमानना उसकी जानकारी के बिना किया गया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!