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महान छत्तीसगढ़ी पारिवारिक फिल्म मोर छाइयां भुइयां पार्ट 2 की फिल्म की समीक्षा।
राकेश कुमार साहू
रायपुर–महान छत्तीसगढ़ी पारिवारिक फिल्म मोर छाइयां भुइयां पार्ट 2 बड़े ही अच्छे ढंग से फिल्म को बनाया गया है फिल्म को देखने के बाद में ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सतीश जैन ने एक नई युग की शुरुआत की है फिल्म का सारांश यह है कि वह इस प्रकार से है।
फिल्म में शिक्षा एवं विकास के संबंध में बताया गया है की किस तरह से राजनीतिकरण कर देश एवं प्रदेश की आर्थिक विकास अवरुद्ध कैसे कर दी जाती है मात्र एक चुनाव के चलते और इस चुनाव के चलते राजनीति में कमीशन खोरी की नीतिगत सिद्धांत को बताया गया है।
फिल्म में हीरो का बाप एक पुलिस विभाग में नौकरी करता है नौकरी करते-करते अपने दोनों बच्चों को अर्थात मन कुरैशी दीपक साहू को पढ़ता लिखता है दोनों को इस काबिल बना देता है कि बड़े ऑफिसर रैंक में पहुंचने के लायक मगर ऐसा नहीं हो सकता इसलिए नहीं हो सकता की राजनीतिकरण के चलते दोनों को रास्ते से भटकना पड़ता है वह इस प्रकार से है।
मन कुरैशी उर्फ उदय कुमार साहू इस फिल्म में मन कुरैशी का नाम उदय कुमार साहू रहता है यह पढ़ लिखकर कलेक्ट्री की एग्जाम दिलाता है और कलेक्टर बन जाता है मगर कलेक्ट्री ना करते हुए अपने भाई दीपक साहू उर्फ़ कार्तिक साहू के बंगले में सचिव का रोल अदा करता है।
दीपक कुमार साहू उर्फ़ कार्तिक साहू इस फिल्म में दीपक कुमार का नाम कार्तिक साहू रहता है जो की राजनीति में खड़ा उतर जाता है और उतरने के पश्चात एक विधायक बनता है और विधायक बनने के साथ-साथ बड़ी-बड़ी टेंडर में ठेकेदारों से कमीशन लेता है और उसकमीशन के आधार पर बड़ी बांग्ला खरीदना है जिस बंगले में रहता है वहां पर कमीशन की पैसों को इकट्ठा करके रखा रहता है जब एंटी करप्शन ब्यूरो की छाप पड़ती है तो उसकी सारी पैसों को कलेक्टर अर्थात मन कुरैशी उदय कुमार साहू अपने बंगले में रख लेता है और अपने भाई को बचाने के चक्कर में अपनी खुद की नौकरी को गंवा बैठता है और यह भी होता है कि दीपक कुमार उर्फ कार्तिक साहू को भ्रष्टाचार अधिनियम के अंतर्गत दोषी मानते हुए सजा सुना दी जाती है इतना बड़ा लोक निर्माण विभाग का मंत्री रहता है जो कि अपनी पद और अपने आप को बचा नहीं पता एंटी करप्शन ब्यूरो के चलते जब छापा पड़ती है तो यह घटना पूरी राजनीति गांव पेज से बनी फिल्म है हालांकि इसे पब्लिक नहीं समझती मगर जब प्रेस वाले इस फिल्म को देखे हैं तो सारी मालूमात पता चल जाती है।
फिल्म की हीरोइन दीक्षा जायसवाल उर्फ सुधा साहू यह कॉलेज में पढ़ती हुई रहती है पढ़ते-पढ़ते मन कुरैशी अर्थात उदय कुमार साहू से प्यार हो जाती है प्यार में तकरार होती है दीक्षा जायसवाल को मन से शादी नहीं होता जिसे अपहरण कर दीपक कुमार साहू उर्फ़ कार्तिक साहू मंडप से उठा कर ले जाता है और अपने बड़े भाई की साथ मंदिर में शादी करवा देता है जब हीरोइन के बाप को पता चलता है कि यह मेरी बेटी को उठा कर ले गया है तो कहां ले गया पुलिस के साथ में जाता है और बोलता है लड़की का बाप मेरी बेटी से जबरदस्ती शादी कर रहा है यह नाबालिक है बोलकर पुलिस वालों को बोलता है कि इस लड़के को गिरफ्तार कर लो और मेरी बेटी मुझे वापस ला दो मगर ऐसा नहीं होता दोनों बालिक अवस्था में रहते हैं और दोनों की शादी धूमधाम से मंदिर में संपन्न होती है संपन्न होने के पश्चात गृहस्ती जीवन चलती रहती है मगर इस बीच में दीपक कुमार साहू उर्फ़ कार्तिक साहू की शादी नहीं हुई रहती क्योंकि उसे तो राजनीति करने से फुर्सत नहीं रहता इसके लिए हीरोइन है वह निम्न है
एल्सा घोष उर्फ डाली या लंदन की रहने वाली होती है लंदन से आकर पढ़ाई लिखाई करती है साथ ही साथ दीपक कुमार साहू उर्फ़ कार्तिक साहू से मेलजोल होता है शादी तक पहुंच कर रह जाती है इनकी मामले मगर शादी नहीं हो पाती इसलिए नहीं हो पाती की कार्तिक साहू को सजा सुना दी जाती है इस फिल्म में अर्थात दीपक कुमार साहू को जब अपनी सजा काट कर वापस आता है तो धूमधाम से दीपक कुमार उर्फ कार्तिक साहू शादी एल्सा घोष उर्फ डाली से शादी हो जाती है।
इस फिल्म की न्यायालय में दोनों पक्षों की दलील को सुना जाता है इसके बाद कार्तिक साहू उर्फ़ दीपक कुमार को फिल्म के हीरो को सजा सुना दी जाती है कलेक्टर जो रहता है मन कुरैशी दूसरे पद से समाप्त कर दिया जाता है जब कलेक्ट्री की नौकरी खत्म हो जाती है तो मन कुरैशी अपने गांव चला जाता है अपने दादा-दादी के साथ में खेती किसानी करते हुए करोड़ अरबो रुपए का मालिक बन जाता है।
सार तत्व यह है कि फिल्म में किस तरह से शिक्षा की राजनीतिकरण की गई किस तरह से राजनीतिकरण में कमीशन खोरी को बढ़ाया गया है और उसे कैसे रोका गया है उसे दर्शाया गया है इस फिल्म में इस तरह की फिल्में सतीश जैन की पहली फिल्म थी मोर छाइयां भुइयां उसी की कार्बन कॉपी है केवल इसमें कलाकारों को नई तकनीक के साथ में प्रस्तुति करने का अभिनय किया गया है।
हमारे संवाददाता एवं जिला ब्यूरो चीफ राकेश कुमार साहू का कहना यह है कि इस फिल्म को हमारे संवाददाता ने पूरी अच्छी तरीके के साथ में देखा देखने के बाद में समीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत किया समीक्षा में ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल के जितने भी लोकसभा चुनाव संपन्न होती है विधानसभा चुनाव संपन्न होती है पंचायत चुनाव संपन्न होती है उसमें जनप्रतिनिधि बनने के लिए वोटरों को खरीदने का प्रयास किया जाता है और उन वोटरों के खरीदे हुए वोट ही चुनाव में हार जीत का फैसला करती है जो जीत जाता है वह कुर्सी पाने के पश्चात हर तरह की विकास कार्यों में कमीशन की मांग करता है जिसके चलते विकास कार्य अवरुद्ध हो जाता है यह इस फिल्म में दिखाया गया है चित्रण किया गया है।
यह फिल्म ज्ञानवर्धक फिल्म है मनोरंजन फिल्म है कुछ राजनीतिक फिल्म है कुछ समाज की उच्च नीच को बताया गया है वैसे इस फिल्म में साहू समाज का उल्लेख किया गया है अर्थात यह की फिल्म के अंदर हीरो हीरोइन हीरोइन के मां-बाप हीरो के मां-बाप साहू सरनेम का उपयोग किया है जो की बड़ी गौरव की बात है।